Tuesday, December 7, 2010

Bad uncle

मेरी बहुत तमन्ना थी कि जब फ़िल्मो मे कोई मर्द जब किसी महिला का ब्लात्कार करता है तो ्मै भी क्यू ना कराऊ अपना ब्लात्कार्। फिर वो इतनी चीखती चिल्लाती क्यू है। घर मे कोई नहीं, ना कोई रोकने वाला, ना कोई टोकने वाला, ना कोई देखने वाला, बदनामी का भी कोई डर नही। फिर वो मस्त हो कर चुदवा क्यो नही लेती। इसमे तो दोनो को मजा आयेगा। फिर वो अपनी राह और आप अपनी राह लो। फ़िल्मो में जब कोई ब्लात्कार सीन देखती हू तो सच मानिये मेरी तो गीली हो जाती है, पर हिरोईने जाने क्यू ब्लात्कार मे रोने पीटने लगती है। मेरे दिल मे भी कई महीनो से लग रहाथा कि कोई आये और मेरा बलात्कार करे।

एक बार मेरे चाचा मेरे घर आये। उनको मैने पहली ही नजर मे भांप लिया कि वो चालू किस्म के है। वो मम्मी पर , फिर मुझ पर लाईन मारने लगे थे। मुझ पर तो कुछ अधिक ही महरबान थे। उसकी भाषा मे मेरे जैसी कड़क माल उसे फिर कहां मिलेगी। वो अधिकतर घर पर मेरे पहने हुये छोटे छोटे कपड़ो मे मुझे निहारता रहता था। मेरी शमीज मे से उभारो को बड़े चाव से देखता था। मुझे लगा कि इसे उत्तेजित करना आसान है। ये जरूर मुझे चोद डालेगा। पर मुझे ये कुछ ठीक भी नही लगता था कि इतना मामूली सा आदमी मुझे चोदे। पर ये तो उपलब्धता पर भी तो निर्भर करता है ना।
चाचा मुझसे अब बहुत बाते, और मजाक करने लगे थे। मै जब बिस्तर पर उल्टी लेटती थी तो वो मेरे झूलते हुये स्तनो को देख कर डोल जाते थे। मै जान करके चाचा को और हिला हिला कर दिखाया करती थी। मेरी शमीज जांघो से ऊपर उठा लिया करती थी, ताकि मेरी चिकनी जांघे देख कर वो और पिघल जाये।
एक दिन आखिर मेरे दिल की बात पूरी हो ही गयी। उस दिन तो घर मे कोई भी नही था। चाचू भी नही थे। बस मै अपनी छोटी सी ढीली ढाली सी शमीज पहनी उल्टी हो कर एक सेक्सी किताब मे खोयी हुयी थी। मुझे पता ही नहीं चला कि चाचू कब आ गये थे और मेरे पास मे खड़े हुये मेरे चूतड़ो के सुन्दर उभारो को देख रहे थे। चाचू ने चुपके से अपनी पेण्ट की चैन खोली और अपना लण्ड बाहर निकाल लिया। मेरी टांगो के ऊपर आ आ कर वो बैठ गये और मेरी टांगो को बुरी तरह से दबा दी। मेरी दोनो बांहे उन्होने कस कर जकड़ ली। हालत ये थी कि मै अब हिल डुल भी नही सकती थी। पर मेरी तरकीब काम कर गयी थी। मैने धीरे से बोला
"चाचू, ये क्या कर रहे हो? देखो लग जायेगी, हटो ना"
पर वो कुछ नही बोले, बस अपने लण्ड के सुपाड़े को मेरी नंगी गाण्ड मे दबा दिया। चूतड़ की दरार मे लण्ड का नंगा और कोमल स्पर्श पा कर मेरी बांछे खिल गयी। अब मेरा ब्लात्कार होगा !!!
"बस करो ना … ऐसे मत करो देखो" मैने यू ही नाकाम सी कोशिश की
दूसरे ही क्षण चाचू का हटटा कटटा लण्ड मेरी गाण्ड के छेद पर था। नरम सा दबाव, उस पर चाचू ने ढेर सारा थूक गण्ड की छेद मे भर दिया
"बस यशोदा, करने दे … मेरी कसम, तुझे मै खूब रुपिया दूंगा"
ओह तो पैसे भी मिलेंगे ! पर मेरे नखरे, भला कैसे और क्यू लगेगा कि ब्लात्कार हो रहा है?
"पर चाचू, मै तो आपकी बेटी की तरह हू, ये मत करिये"
"गाण्ड मे घुस गयी बेटी … पड़ी रह ऐसे ही" और उनका लौड़ा मेरी गाण्ड मे फ़क करता हुआ घुस गया। बहुत मजा आया, मीठा मीठा सा, गुदगुदी सी लगी। पर ऊपर से मै धीरे से चीख उठी
"अरे मर गयी। मेरी गाण्ड फ़ट गयी रे, कोई बचाओ मुझे"
"तेरी मां की फ़ुद्दी … और चिल्ला साली"
उसने और दबाव डाल कर अपना लण्ड आधे से भी अधिक घुसेड़ दिया। मुझे थोड़ी सी तकलीफ़ हुयी पर फिर मैने अपने आप को धीरे से सेट कर लिया और गाण्ड का द्वार ढीला कर दिया। उसके दोनो हाथ अब धीरे से मेरी चूंचियो पर आ गये और मेरे पूरे शरीर मे एक जहर भरी मीठी कसक फ़ैल गयी।
"चाचू देखना, पापा को आने दो, सब बता दूंगी उन्हे कि आपने मेरे साथ क्या किया है"
"अब चुप, जो कहना हो कह देना, अभी तो मजा ले लू" कह कर वो मेरी गाण्ड भचाभच चोदने लगा। मैने कस कर तकिया दबा लिया और इन सुनहरे पलो को आनन्द से भोगने लगी। तभी चाचू ने मुझे जोर से पकड़ कर सीधा कर दिया, और लण्ड को मेरी चूत का निशाना बना कर अन्दर तक घुसेड़ दिया। बेचारी रस भरी चूत, इतनी चिकनी हो गयी थी कि लण्ड पूरा ही घुस गया। चाचू मुझ से लिपट गये। मेरी चूंचियो का मर्दन करने लगे, मै तो मद मस्त हो उठी , सब भूल गयी कि ब्लात्कार का मै नाटक कर रही थी, शायद इसीलिये चाचू को भी बहुत उत्तेजना हो रही थी। पर अब मेरा शरीर उछल उछल कर लण्ड ले रहा था, मुझे लग रहा था कि बस अब ये मुझे जोर से चोद दे। तभी मै झड़ने लगी। धीरे धीरे मै पूरी झड़ गयी, पर चाचू था कि चोदे ही जा रहा था। थोड़ी देर मे मै फिर से उत्तेजित होने लगी और फिर पूरे जोश में आ गयी। बहुत देर तक चुदती रही। फिर साथ ही साथ हम दोनो झड़ गये। चाचू मुझे चोद कर अलग हट गये। अब मै रोने का नाटक करने लगी। वो मुझे चुप कराने लगे, मुझसे माफ़ी मांगने लगे। जेब से मुझे पांच हजार रुपये भी दिये।
"यशोदा, मुझसे गलती तो हुयी है, अब मै यहां से जाता हू और कभी नही आऊंगा" बड़े ही उदास स्वर मे वो बोले। मुझे उसे देख कर दया आने लगी। मै चाचू से जल्दी से जा कर लिपट गयी।
"चाचू, मत जाओ, मै तो मजाक कर रही थी तुम्हे पटा रही थी" चाचू मेरी बात सुन कर नोर्मल हो गये।
"ये तो मैने खुद ही नंगी हो कर तुम्हे उत्तेजित कर रही थी कि तुम मुझे कैसे भी करके बस चोद दो"
"ओह हो… मै इतना भी नहीं समझ पाया, कि तुम चुदना चाहती हो, मै तो खुद ही बेवकूफ़ निकला"
"हां मेरे चाचू, अब मुझे मस्ती से खूब चोदो, मेरा खूब ब्लात्कार करो , हाय मैं मर जाऊ तुम पर"
और हम दोनो फिर से एक दूसरे मे गुम होने लगे थे।

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